Friday, December 6, 2019

हर्षवर्धन जीवनी - Biography of Harshavardhana in Hindi Jivani

हर्षवर्धन (590-647 ई.) प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह हिंदू सम्राट् था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवान् च्वांग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्टरचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। शासनकाल ६०६ से ६४७ ई.। वंश - थानेश्वर का पुष्यभूति वंश।
उसके पिता का नाम 'प्रभाकरवर्धन' था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राज्यश्री उसकी बड़ी बहन थी। ६०५ ई. में प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के पश्चात् राजवर्धन राजा हुआ पर मालव नरेश देवगुप्त और गौड़ नरेश शंशांक की दुरभिसंधि वश मारा गया। हर्षवर्धन 606 में गद्दी पर बैठा। हर्षवर्धन ने बहन राज्यश्री का विंध्याटवी से उद्धार किया, थानेश्वर और कन्नौज राज्यों का एकीकरण किया। देवगुप्त से मालवा छीन लिया। शंशाक को गौड़ भगा दिया। दक्षिण पर अभियान किया पर आंध्र पुलकैशिन द्वितीय द्वारा रोक दिया गया।
उसने साम्राज्य को सुंदर शासन दिया। धर्मों के विषय में उदार नीति बरती। विदेशी यात्रियों का सम्मान किया। चीनी यात्री युवेन संग ने उसकी बड़ी प्रशंसा की है। प्रति पाँचवें वर्ष वह सर्वस्व दान करता था। इसके लिए बहुत बड़ा धार्मिक समारोह करता था। कन्नौज और प्रयाग के समारोहों में युवेन संग उपस्थित था। हर्ष साहित्य और कला का पोषक था। कादंबरीकार बाणभट्ट उसका अनन्य मित्र था। हर्ष स्वयं पंडित था। वह वीणा बजाता था। उसकी लिखी तीन नाटिकाएँ नागानंद, रत्नावली और प्रियदर्शिका संस्कृत साहित्य की अमूल्य निधियाँ हैं। हर्षवर्धन का हस्ताक्षर मिला है जिससे उसका कलाप्रेम प्रगट होता है।
सामन्तवाद में वृद्धि
हर्ष के समय में अधिकारियों को वेतननकद  जागीर के रूप में दिया जाता थापर ह्वेनसांग का मानना है किमंत्रियों एवं अधिकारियों का वेतन भूमि अनुदान के रूप में दिया जाता था। अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नकद वेतन के बदले बड़े पैमाने पर भूखण्ड देने की प्रक्रिया से हर्षकाल में सामन्तवाद अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया। हर्ष का प्रशासन गुप्त प्रशासन की अपेक्षाकृत अधिक सामन्तिक एवं विकेन्द्रीकृत हो गया। इस कारण सामन्तों की कई श्रेणियां हो गई थीं।
राष्ट्रीय आय एवं कर
हर्ष के समय में राष्ट्रीय आय का एक चौथाई भाग उच्च कोटि के राज्य कर्मचारियों को वेतन या उपहार के रूप मेंएक चौथाई भाग धार्मिक कार्यो के खर्च हेतुएक चौथाई भाग शिक्षा के खर्च के लिए एवं एक चौथाई भाग राजा स्वयं अपने खर्च के लिए प्रयोग करता था। राजस्व के स्रोत के रूप में तीन प्रकार के करों का विवरण मिलता हैभागहिरण्यएवं बलि। 'भागया भूमिकर पदार्थ के रूप में लिया जाता था। 'हिरण्यनगद में रूप में लिया जाने वाला कर था। इस समय भूमिकर कृषि उत्पादन का 1/6 वसूला जाता था।
सैन्य रचना
ह्वेनसांग के अनुसार हर्ष की सेना में क़रीब 5,000 हाथी, 2,000 घुड़सवार एवं 5,000 पैदल सैनिक थे। कालान्तर में हाथियों की संख्या बढ़कर क़रीब 60,000 एवं घुड़सवारों की संख्या एक लाख पहुंच गई। हर्ष की सेना के साधारण सैनिकों को चाट एवं भाटअश्वसेना के अधिकारियों को हदेश्वर पैदल सेना के अधिकारियों को बलाधिकृत एवं महाबलाधिकृत कहा जाता था।
हर्षवर्धन का सम्राज्य विस्तार :
 महान सम्राट हर्षवर्धन ने लगभग आधी शताब्दी तक अर्थात 590 ईस्वी से लेकर 647 ईस्वी तक अपने राज्य का विस्तार किया। हर्षवर्धन ने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया था। हर्ष ने लगभग 41 वर्ष शासन किया। इन वर्षों में हर्ष ने अपने साम्राज्य का विस्तार जालंधरपंजाबकश्मीरनेपाल एवं बल्लभीपुर तक कर लिया। इसने आर्यावर्त को भी अपने अधीन किया। हर्ष के कुशल शासन में भारत तरक्की की ऊंचाईयों को छू रहा था। हर्ष के शासनकाल में भारत ने आर्थिक रूप से बहुत प्रगति की थी।
माना जाता है कि हर्षवर्धन ने अरब पर भी चढ़ाई कर दी थीलेकिन रेगिस्तान के एक क्षेत्र में उनको रोक दिया गया। इसका उल्लेख भविष्य पुराण में मिलता है।
हर्ष के अभियान :
माना जाता है कि सम्राट हर्षवर्धन की सेना में 1 लाख से अधिक सैनिक थे। यही नहींसेना
में 60 हजार से अधिक हाथियों को रखा गया था। लेकिन हर्ष को बादामी के चालुक्यवंशी शासक पुलकेशिन द्वितीय से पराजित होना पड़ा। ऐहोल प्रशस्ति (634 .) में इसका उल्लेख मिलता है। 6ठी और 8वीं ईसवीं के दौरान दक्षिण भारत में चालुक् बड़े शक्तिशाली थे। इस साम्राज् का प्रथम शास पुलकेसन, 540 ईसवीं में शासनारूढ़ हुआ और कई शानदार विजय हासिल कर उसने शक्तिशाली साम्राज् की स्थापना की। उसके पुत्रों कीर्तिवर्मन  मंगलेसा ने कोंकण के मौर्यन सहित अपने पड़ोसियों के साथ कई युद्ध करके सफलताएं अर्जित कीं  अपने राज् का और विस्तार किया।
कीर्तिवर्मन का पुत्र पुलकेसन द्वितीय चालुक् साम्राज् के महान शासकों में से एक था। उसने लगभग 34 वर्षों तक राज् किया। अपने लंबे शासनकाल में उसने महाराष्ट्र में अपनी स्थिति सुदृढ़ की  दक्षिण के बड़े भू-भाग को जीत लिया। उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि हर्षवर्धन के विरुद्ध रक्षात्मक युद्ध लड़ना थी।
छा गया
जैसा कि उत्तर भारत को छोटे गणराज्यों और छोटे राजशाही राज्यों में वापस कर दिया गयाजो पहले गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद गुप्त शासकों द्वारा शासित थेहर्षा ने पंजाब से लेकर मध्य भारत तक छोटे गणराज्यों को एकजुट कियाऔर उनके प्रतिनिधियों ने उन्हें 606 अप्रैल को एक विधानसभा में राजा का दर्जा दिया। महाराजा का खिताब हर्षा ने बौद्ध धर्म को अपनाया और हर्ष की साम्राज्य की स्थापना की जो पूरे उत्तरी भारत को अपने नियंत्रण में ले आए। शांति और समृद्धि की वजह से उसके न्यायालय ने महानतावाद का केंद्र बनायादूर-दूर से विद्वानोंकलाकारों और धार्मिक आगंतुकों को आकर्षित किया। चीनी यात्री जूआनज़ांग ने हर्ष की अदालत का दौरा कियाऔर उनके न्याय और उदारता की प्रशंसा करते हुएउनके एक बहुत ही अनुकूल खाता लिखा।
पुलकेनेस II ने 612-619 एडी के सर्दियों में नर्मदा के तट पर हर्ष को हराया।
648 मेंतांग राजवंश सम्राट तांग तेज़ोंग ने चीन को एक राजदूत भेजने के लिए हर्ष के जवाब में भारत को वांग शूएन्स भेजा। हालांकि एक बार भारत में उन्होंने खोज की कि हर्षा का निधन हो गया और नए राजा ने वांग पर हमला किया और उनके 30 माउंट मातहत थे। इससे वाँग ज़्यूएंस ने तिब्बत से भाग निकले और फिर 7,000 से अधिक नेपाली घुड़सवार पैदल सेना और 1,200 तिब्बती पैदल सेना के एक जोड़े को बढ़ाना और 16 जून को भारतीय राज्य पर हमला किया। इस हमले की सफलता वांग जुआनेस ने "ग्रैंड मास्टर फॉर  ग्रेट मास्टर समापन न्यायालय। " उन्होंने चीन के लिए एक बौद्ध अवशेष की सूचना दी।