Sunday, March 7, 2021

Swami Dayanand Saraswati Jayanti

आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपना सारा जीवन मानव कल्याण, धार्मिक कुरीतियों पर रोकथाम और विश्व की एकता के प्रति समर्पित किया. उनके काम और समर्पण को याद करते हुए उनका जन्मदिन 'महर्षि दयानंद जयंती' के रूप में मनाया जाता है. विश्व उद्धार के लिए किए गए उनके अमूल्य प्रयासों को आज भी याद किया जाता है.

दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के तनकारा में हुआ था. जबकि हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती मनाई जाती है. इस साल यह तिथि 08 मार्च यानी आज पड़ रही है. 21 साल की युवावस्था में दयानंद जी गृहस्ती का त्याग कर आत्मिक और धार्मिक सत्य की तलाश में निकल पड़े. साल 1845 से 1869 तक उनका ये सफर जारी रहा. अपने इस 25 साल की वैराग्य यात्रा में उन्होंने कई सारी दैविक क्रियाकलापों के बीच योगा का भी अभ्यास किया.

दयानंद जी ने श्री विराजानंद डन्डेसा के शरण में विभिन्न प्रकार के योगों के गुढ़ों का अभ्यास किया. 7 अप्रैल 1875 को उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की. उनका मकसद सारे विश्व को एक साथ जोड़ना था. उन्होंने आर्य समाज के द्वारा 10 मूल्य सिद्धान्तों पर चलने की सलाह दी. स्वामी दयानंद मूर्ति पूजा के सख्त खिलाफ थे साथ ही वो धर्म की बनी-बनाई परम्पराओं और मान्यताओं को नहीं मानते थे.

आर्य समाज मूर्ति पूजा, पशुओं की बली देने, मंदिरों में चढ़ावा देने, जाति विवाह, मांस का सेवन, महिलाओं के प्रति असमानता की भावना जैसी मानसिकताओं के खिलाफ उन्होंने लोगों को जागरुक किया. महर्षि दयानंद सरस्वती को वेद और संसकृति में महारथ हासिल थी. उन्होंने हमेशा ब्रह्मचार्य का पालन किया और इसे ईश्वर से मिलाप का सबसे प्रमाणित तरीका बताया. इसके अलावा उन्होंने महिलाओं से भेदभाव के प्रति समाज में फैली बुरी मानसिकता को भी मिटाने की कोशिश की.

महर्षि दयानंद सरस्वती के कई सारे विचार किताबों के रूप में प्रकाशित हैं. उनके करीब 60 से ज्यादा संकलन मौजूद हैं. उनकी किताब सत्यार्थ प्रकाश कई सारे लोगों के लिए मर्गदर्शक सिद्ध हुई. 30 अक्टूबर 1883 को राजस्थान में मंत्र जाप करते हुए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए.


जानिए 8 मार्च को क्यों मनाते हैं अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

महिलाओं के सम्मान में हर साल 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि हर साल 8 मार्च को ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस क्यों मनाया जाता है? तो चलिए इस बारे में जानते हैं.
न्यू यॉर्क में हुए एक मजदूर आंदोलन के बाद ही अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की शुरुआत हुई थी. बात 1908 की है जब न्यूयॉर्क  में लगभग 15000 महिलाएं सड़क पर उतर आयी थीं और उन्होंने इस बात को लेकर मार्च निकाला था कि उनकी नौकरी के घंटे कम किए जाएं, उनका वेतनमान बढ़ाया जाए और उन्हें वोट डालने का अधिकार मिले. महिलाओं के इस आंदोलन को सफलता मिली, और एक साल बाद ही सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने इस दिन को राष्ट्रीय महिला दिवस घोषित कर दिया. इस राष्ट्रीय महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस बनाने का श्रेय जाता है जर्मनी की सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी की महिला ऑफिस की लीडर clara zetkin को. उन्होंने सुझाव दिया कि महिलाओं को अपनी मांगो को आगे बढ़ाने के लिए हर देश में अंतराष्ट्रीय महिला दिवस मनाना चाहिए. एक कांफ्रेंस में 17 देशों की 100 से ज्यादा महिलाओं ने इस सुझाव पर सहमति जताई और इस तरह International Women's Day की शुरुआत हुई

Saturday, March 6, 2021

महाभारत की कथाएं : यथा दृष्टि तथा सृष्टि : जैसा दृष्टिकोण वैसा सँसार!!

पाण्डवों और कौरवों को शस्त्र शिक्षा देते हुए आचार्य द्रोण के मन में उनकी परीक्षा लेने की बात उभर आई।
परीक्षा कैसे और किन विषयों में ली जाए इस पर विचार करते उन्हें एक बात सूझी कि क्यों न इनकी वैचारिक प्रगति और व्यावहारिकता की परीक्षा ली जाए।
दूसरे दिन प्रातः आचार्य ने राजकुमार दुर्योधन को अपने पास बुलाया और कहा- 'वत्स! तुम समाज में से एक अच्छे आदमी की परख करके उसे मेरे सामने उपस्थित करो।'
दुर्योधन ने कहा- 'जैसी आपकी इच्छा' और वह अच्छे आदमी की खोज में निकल पड़ा।
कुछ दिनों बाद दुर्योधन वापस आचार्य के पास आया और कहने लगा- 'मैंने कई नगरों, गांवों का भ्रमण किया परंतु कहीं कोई अच्छा आदमी नहीं मिला।'
फिर उन्होंने राजकुमार युधिष्ठिर को अपने पास बुलाया और कहा- 'बेटा! इस पृथ्वी पर से कोई बुरा आदमी ढूंढ कर ला दो।'
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युधिष्ठिर ने कहा- 'ठीक है गुरू जी! मैं कोशिश करता हूं।'
इतना कहने के बाद वे बुरे आदमी की खोज में चल दिए। काफी दिनों के बाद युधिष्ठिर आचार्य के पास आए।
आचार्य ने पूछा- 'क्यों? किसी बुरे आदमी को साथ लाए?'
युधिष्ठिर ने कहा- 'गुरू जी! मैंने सर्वत्र बुरे आदमी की खोज की परंतु मुझे कोई बुरा आदमी मिला ही नहीं। इस कारण मैं खाली हाथ लौट आया हूं।'
सभी शिष्यों ने आचार्य से पूछा- 'गुरुवर! ऐसा क्यों हुआ कि दुर्योधन को कोई अच्छा आदमी नहीं मिला और युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी नहीं।'
आचार्य बोले- 'बेटा! जो व्यक्ति जैसा होता है उसे सारे लोग अपने जैसे दिखाई पड़ते हैं। इसलिए दुर्योधन को कोई अच्छा व्यक्ति नहीं मिला और युधिष्ठिर को कोई बुरा आदमी न मिल सका।'