आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपना सारा जीवन मानव कल्याण, धार्मिक कुरीतियों पर रोकथाम और विश्व की एकता के प्रति समर्पित किया. उनके काम और समर्पण को याद करते हुए उनका जन्मदिन 'महर्षि दयानंद जयंती' के रूप में मनाया जाता है. विश्व उद्धार के लिए किए गए उनके अमूल्य प्रयासों को आज भी याद किया जाता है.
दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के तनकारा में हुआ था. जबकि हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती मनाई जाती है. इस साल यह तिथि 08 मार्च यानी आज पड़ रही है. 21 साल की युवावस्था में दयानंद जी गृहस्ती का त्याग कर आत्मिक और धार्मिक सत्य की तलाश में निकल पड़े. साल 1845 से 1869 तक उनका ये सफर जारी रहा. अपने इस 25 साल की वैराग्य यात्रा में उन्होंने कई सारी दैविक क्रियाकलापों के बीच योगा का भी अभ्यास किया.
दयानंद जी ने श्री विराजानंद डन्डेसा के शरण में विभिन्न प्रकार के योगों के गुढ़ों का अभ्यास किया. 7 अप्रैल 1875 को उन्होंने आर्य समाज की स्थापना की. उनका मकसद सारे विश्व को एक साथ जोड़ना था. उन्होंने आर्य समाज के द्वारा 10 मूल्य सिद्धान्तों पर चलने की सलाह दी. स्वामी दयानंद मूर्ति पूजा के सख्त खिलाफ थे साथ ही वो धर्म की बनी-बनाई परम्पराओं और मान्यताओं को नहीं मानते थे.
आर्य समाज मूर्ति पूजा, पशुओं की बली देने, मंदिरों में चढ़ावा देने, जाति विवाह, मांस का सेवन, महिलाओं के प्रति असमानता की भावना जैसी मानसिकताओं के खिलाफ उन्होंने लोगों को जागरुक किया. महर्षि दयानंद सरस्वती को वेद और संसकृति में महारथ हासिल थी. उन्होंने हमेशा ब्रह्मचार्य का पालन किया और इसे ईश्वर से मिलाप का सबसे प्रमाणित तरीका बताया. इसके अलावा उन्होंने महिलाओं से भेदभाव के प्रति समाज में फैली बुरी मानसिकता को भी मिटाने की कोशिश की.
महर्षि दयानंद सरस्वती के कई सारे विचार किताबों के रूप में प्रकाशित हैं. उनके करीब 60 से ज्यादा संकलन मौजूद हैं. उनकी किताब सत्यार्थ प्रकाश कई सारे लोगों के लिए मर्गदर्शक सिद्ध हुई. 30 अक्टूबर 1883 को राजस्थान में मंत्र जाप करते हुए उन्होंने अपने प्राण त्याग दिए.
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